बुनी हुई रस्सी sentence in Hindi
pronunciation: [ buni hue ressi ]
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- 1972-भवानीप्रसाद मिश्र / बुनी हुई रस्सी (काव्य)
- बुनी हुई रस्सी को घुमायें उल्टा
- उन्हें १९७२ में बुनी हुई रस्सी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
- (भवानीप्रसाद मिश्र की कविता ' बुनी हुई रस्सी ' का एक अंश)
- उन्हें 1972 में ‘ बुनी हुई रस्सी ‘ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
- उन्हें १ ९ ७ २ में बुनी हुई रस्सी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
- सन् 1972 में आपकी कृति ‘ बुनी हुई रस्सी ' के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
- उनकी पुस्तक ‘ बुनी हुई रस्सी ' पर वर्ष 1972 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
- विविध1972 में “ बुनी हुई रस्सी ” नामक रचना के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से से विभूषित।
- बुनी हुई रस्सी के बट पूरी तरह खोल देने से खूबसूरती तो कम होती ही है, उसकी ताकत भी कम हो जाती है.
- साथ ही कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी की कविता “ बुनी हुई रस्सी ” की निहित भावना को समझाते हुए मुख्य अतिथि के रूप में उक्त कार्यक्रम में यह रेखांकित किया, कि...
- कुछ प्रमुखकृतियाँगीत फरोश, चकित है दुख, गाँधी पंचशती, अँधेरी कविताएँ, बुनी हुई रस्सी, व्यक्तिगत, खुशबू के शिलालेख, परिवर्तन जिए, त्रिकाल संध्या, अनाम तुम आते हो, इदंन मम्, शरीर कविता फसलें और फूल, मान-सरोवर दिन, संप्रति, नीली रेखा तक, कालजयी।
- अपनी उलझनों में बुने हुए कुछ ख्वाब जाल बन जाते हैं कुछ बटे हुए जालों में फिर से नये ख्वाब जग जाते हैं रस्सी पर चलते छायानट प्रतिमा अभिनय करती है बुनी हुई रस्सी के जैसे जीवनरेखा चलती है।..................................
- मशीन से बुनी हुई रस्सी और हाथ से वटी रस्सी में यही फर्क होता है कि हाथ वाली रस्सी एकदम से नहीं टूटती बल्कि घिस कर टूटती है और टूटना शुरू होने पर भी इतना वक़्त ज़रूर देती है कि संभालने / संभलने का मौका मिले.
- वर्धा आश्रम में अध्यापक के रूप में भी काम किया. आजीवन ' गाँधी स्मारक निधि सर्व सेवा संघ से जुड़े रहे. ' बुनी हुई रस्सी ' काव्य संकलन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हु ए. उनकी गीतफरोश कविता मुझे बहुत पसन्द है.
- नई दिल्ली, 27 मार्च ' गीत फरोश ', ' बुनी हुई रस्सी ', ' खुशबू के शिलालेख ', ' अंधेरी कविताएं ' सहित 17 काव्य संग्रह और खंडकाव्य ' कालजयी ' के रचयिता प्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च, 1913 को हुआ था।
- कविता संग्रह-गीत फरोश, चकित है दुख, गांधी पंचशती, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल संध्या, व्यक्तिगत, परिवर्तन जिए, तुम आते हो, मानसरोवर आदि, बच्चों के लिए तुकों के खेल, संस्मरण जिन्होंने मुझे रचा, निबंध संग्रह नीति कुछ राजनीति आदि उनकी प्रमुख कृतियां हैं।
- विविध लिंक अनुभूति पर कविताएँ फोटो कुछ चित्र सहज जीवन के अप्रतिम रचनाकार भवानीप्रसाद मिश्र कविताएँ * सन्नाटा * जाहिल मेरे बाने * सतपुड़ा के जंगल * गीत फरोश * वाणी की दीनता * इसे जगाओ * बुनी हुई रस्सी * चार कौए उर्फ चार हौए * अब के * कहीं नहीं बचे * झुर्रियों से भरता हुआ * तुमने जो दिया है * वस्तुतः * नहीं बनेगा * मैं तैयार नहीं था
- मुखपृष्ठ पर पहुँचें बुनी हुई रस्सी बुनी हुई रस्सी को घुमायें उल्टा तो वह खुल जाती हैं और अलग अलग देखे जा सकते हैं उसके सारे रेशे मगर कविता को कोई खोले ऐसा उल्टा तो साफ नहीं होंगे हमारे अनुभव इस तरह क्योंकि अनुभव तो हमें जितने इसके माध्यम से हुए हैं उससे ज्यादा हुए हैं दूसरे माध्यमों से व्यक्त वे जरूर हुए हैं यहाँ कविता को बिखरा कर देखने से सिवा रेशों के क्या दिखता है लिखने वाला तो हर बिखरे अनुभव के रेशे को समेट कर लिखता है!
- मुखपृष्ठ पर पहुँचें बुनी हुई रस्सी बुनी हुई रस्सी को घुमायें उल्टा तो वह खुल जाती हैं और अलग अलग देखे जा सकते हैं उसके सारे रेशे मगर कविता को कोई खोले ऐसा उल्टा तो साफ नहीं होंगे हमारे अनुभव इस तरह क्योंकि अनुभव तो हमें जितने इसके माध्यम से हुए हैं उससे ज्यादा हुए हैं दूसरे माध्यमों से व्यक्त वे जरूर हुए हैं यहाँ कविता को बिखरा कर देखने से सिवा रेशों के क्या दिखता है लिखने वाला तो हर बिखरे अनुभव के रेशे को समेट कर लिखता है!
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